New Delhi: 8 मार्च का दिन पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष का थीम है, ” Women in leadership: an equal future in a Covid19 world”।
आज हम यहां पर बात करेंगे कि यह दिवस जो 1909 से लगातार अभी तक मनाया जा रहा है, अपने लक्ष्यों को कितना पूर्ण कर पाने में सक्षम हुआ है। यूं तो महिला दिवस मनाए जाने का उद्देश्य विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में इस दिन को उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
यदि हम उपरोक्त पंक्ति में इस्तेमाल होने वाले तीन शब्द आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक, जो कि महिलाओं को उपलब्धियों से जुड़ी है, महिलाएं और हम इन तीन शब्दों को अब तक कितना समझ पाएं है और इन तीन शब्दों के क्षेत्रों में महिलाएं आज कितनी सफल है यह भी जानना अति आवश्यक है।
यदि हम यहां केवल भारत में महिलाओं की आर्थिक स्थिति की बात करें तो हम देखते हैं कि प्राचीन काल से अब तक एक धीमी गति का सुधार हो सका है क्योंकि आर्थिक क्षेत्र की श्रम भागीदारी में महिलाएं केवल 19.9% है। वहीं, परिवार में महिला के रूप में मुखिया का आंकड़ा 9.2% है। वहीं, राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी 65.63% रही है, जो कि थोड़ा उचित आंकड़ा है। लेकिन दूसरी ओर महिलाओं की संसद के निचले सदन में भागीदारी बढ़ाने और उनको आरक्षण देने वाला बिल ” The women reservation Act 2008″ अभी भी संसद की अलमारी के किसी कोने में कैद पड़ा है।
आपको ज्ञात हो कि यह बिल महिलाओं को लोकसभा में एक तिहाई सीट देने के लिए प्रस्तावित था। अब अगर बात की जाए सामाजिक क्षेत्र की तो महिलाएं समाज में जहां पुरुषों की बराबरी पाने में थोड़ी सफल हुईं हैं। वहीं, मानसिक असमानता अभी भी समाज में बरकरार है।
चूंकि इस बार का महिला दिवस का थीम COVID के बाद का महिलाओं का भविष्य बताता है, तो आपको बता दें कि लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा में पिछले साल की तुलना में बढ़ोत्तरी हुई है। महिलाओं के प्रति हिंसा, चाहे वो घरेलू हिंसा हो, रेप हो, लड़का-लड़की भेदभाव हो, कन्या भ्रूण हत्या हो, या कार्य स्थल पर महिलाओं के साथ भेदभाव या शोषण का मामला हो, इनमें दिन प्रतिदिन इजाफा ही देखने को मिलता है।
हमारे देश में महिलाओं के लिए ढेरों नियम कानून बनाए गए हैं लेकिन फिर भी महिलाओं को उनका उचित लाभ अभी भी प्राप्त नहीं है। इसका एक प्रमुख कारण है इंसान के सोच में बदलाव। जी हां, कोई भी नियम कानून की परिणति तभी होगी जब उसे लागू करने वाले और करवाने वाले वास्तव में ‘महिला दिवस’ की वास्तविकता को समझेंगे और अपने विचारों में परिवर्तन करेंगे और इसकी शुरुआत परिवार से होगी। परिवारों में माता पिता लड़का-लड़की करना बंद करें और लड़कों को भी उन्हीं आदर्शों और मूल्यों का पाठ पढ़ाएं जो कि एक लड़की को पढ़ाया जाता है। वास्तव में महिला दिवस की सार्थकता इन्हीं पहलुओं पर ध्यान देने से होगी।
ज्योतिष्मिता उपाध्याय