उत्तर प्रदेश: मिर्ज़ापुर में महज 312 रुपए के मुकदमे का निस्तारण 41 साल बाद हुआ। इस दौरान तीन पीढ़ियों ने कोर्ट के चक्कर काटे और मुकदमा लड़ा। जबकि यह रकम 1977 में ही जमा कर दिया था। माननीय सिविल जज सीनियर डिवीजन कोर्ट ने इस मामले की गड़बड़ी पकड़ी। इसके बाद मुकदमे का निपटारा हुआ। मुकदमे के दौरान केस दायर करने वाली महिला और उसके पुत्र की मौत के बाद तीसरी पीढ़ी के पौत्र ने कोर्ट का आदेश मिलने के बाद राहत की सांस ली।
क्लर्क की गलती की वजह से 41 साल तक तीन पीढ़ियां काटती रहीं कोर्ट के चक्कर
बता दें 312 रुपए का ये मुकदमा साल 1977 से कोर्ट में चल रहा था। 1975 में घर कि कुर्की हो जाने के बाद कोर्ट में मुकदमा दायर करने पर कोर्ट फीस के तौर पर पीड़ित गंगा देवी को 312 रुपये जमा करना था। पैसा जमा करने के बाद भी क्लर्कों की गलती से कोर्ट के पत्रावली में पैसा नहीं चढ़ पाया था। जिसके बाद मुकदमे की पेंडेंसी पर नजर पड़ने के बाद जज ने इसका निस्तारण किया।
मिर्ज़ापुर सत्र न्यायालय में चल रहे गंगा देवी बनाम राज्य सरकार के केस में किसी ने क्लर्क की गलती पर ध्यान नहीं दिया। 1975 में गंगा देवी के मकान की कुर्की का आदेश जारी हुआ था। उन्होंने इसके खिलाफ सिविल जज की अदालत में केस दायर कराया। 1977 में कोर्ट ने महिला को कोर्ट फीस के तौर पर 312 रुपए जमा कराने के लिए कहा। रुपए जमा कराने पर कोर्ट ने मामला खत्म कर दिया था। मगर निचली अदालत के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने सेशन कोर्ट में अपील की। यहां कोर्ट ने इसे खारिज कर पत्रावली निचली अदालत को भेज दी। लेकिन क्लर्क की गलती से कोर्ट फीस जमा करने की बात दस्तावेजों में दर्ज नहीं हो पायी।
करीब 20 वर्ष पूर्व गंगा देवी के निधन के बाद उनके पुत्र मंगल तिवारी मुकदमे को देखते रहे। दस वर्ष पूर्व उनका भी निधन हो जाने पर केस उनके पांच पौत्र को विरासत में मिला। 41 साल में इस मामले की फाइल कई जजों के सामने से होकर गुजरी, लेकिन कोई भी गलती को नहीं पकड़ पाया। जब मामला सिविल जज लवली जायसवाल की कोर्ट में पहुंचा तो गलती समाने आई। जिसके बाद उन्होंने मामले का निस्तारण किया।
टीम बेबाक