New Delhi: आर्मी किड्स (Army Kids) बेहद अनुशासित परवरिश के लिए जाने जाते हैं। भारतीय टीम (Indian Team) के बल्लेबाज और आईपीएल (IPL) मैच विनर मनीष पांडे (Manish Pandey) भी इससे अछूते नहीं हैं। अपने बचपन के प्यार और अपनी यादों के बारे में पांडे (Manish Pandey) ने खुल कर बात की है।
पावर हिटर पांडे (Manish Pandey) अपने बचपन को याद करते हुए बताते हैं, “हम अनुशासित परिवेश में पले बढ़े। हमारी दिनचर्या बेहद सख्त थी। हमसे रोज सुबह 5 बजे उठ जाने और क्रिकेट की प्रैक्टिस शुरु करने के लिए सुबह 6 बजे तक ग्राउंड पर होने की उम्मीद की जाती थी। फिर पूरा दिन स्कूल में बिताने के बाद, हम वापस आते, थोड़ा आराम करते और फिर होमवर्क करते। करीब 4:30 (साढ़े चार) बजे, हम फिर से मैदान पर होते।”
वे (Manish Pandey) कहते हैं “सच कहूं तो मुझे अनुशासित जीवनशैली पसंद थी। मेरे लिए यह इसलिए भी खास था क्योंकि मेरे पिता जी मेरे साथ खेला करते थे। वे घंटों तक मेरे लिए गेंद डाला करते और यहां तक कि वे मैदान पर जवानों को भी बुला लेते और वे जवान मेरे साथ क्रिकेट (Cricket) खेला करते। वह शानदान समय था।”
पांडे (Manish Pandey) बताते हैं, “मैं ऐसा ही चाहता था, और आज भी ऐसा ही चाहता हूं। मुझे आर्मी लाइफ बेहद पसंद है। मुझे मेरे पिता जी की यूनिफॉर्म, उनके जीने का तरीका, देश के लिए उनका प्यार, बहुत पसंद था। काफी समय तक मैं आर्मी ज्वाइन करना चाहता था। ये तो मेरे पिताजी थे, जिन्होंने मेरे क्रिकेटर बनने का ख्वाब देखा था। जब मैं 15-16 साल का हुआ, तब तक मेरा प्रदर्शन अच्छा होने लगा था और मैं राज्य के लिए खेलने लगा था। उस समय मुझे एहसास हुआ कि मैं क्रिकेट में करियर बना सकता हूं।”
बिल्कुल, आर्मी लाइफस्टाइल (Army Lifestyle) में मस्ती और अनुशासन दोनों है। पांडे बताते हैं, “मुझे एक रेजिमेंट याद है जिसके प्रतिबंधित क्षेत्र में सेना के अद्भुत टैंक रखे गए थे। बच्चे इन्हें सिर्फ फिल्मों में ही देख पाते थे। मैं अपने दोस्तों को लेकर इस इलाके में चला गया और बहुत मस्ती की। इससे न सिर्फ मुझे परेशानी हुई बल्कि इस क्षेत्र के प्रभारी जवान को भी इतनी कड़ी सज़ा मिली कि उन्होंने मुझसे एक महीने तक बात नहीं की।”
सबसे गंभीर था बचपन का अधूरा रोमांस। “आर्मी फैमिली होने की वजह से, हमें हर साल शिफ्ट करना पड़ता था। मुझे ऐसा करना अच्छा लगता था। नए लोगों से मिलना, नए दोस्त बनाना, अलग-अलग संस्कृतियों से सीखना। लेकिन मुझे अपने किशोरावस्था की एक घटना याद है। हम रेलवे स्टेशन पर थे और सेना के कुछ परिवार हमें विदा करने आए थे। मुझे जिस लड़की पर क्रश था वह भी अपने पिताजी के साथ आई थी। तो आप कह सकते हैं कि वह पूरी तरह से डीडीएलजे (DDLJ) पल था। सिवाए इसके कि ‘जा सिमरन जा’, कहने की बजाए उसके पिताजी ने उसका हाथ पकड़ा और कहा, ‘पीछे हटो, अभी तुम बहुत छोटी हो।’
टीम बेबाक/क्रिकबज़