सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने आज सुनवाई करते हुए ये फैसला लिया है कि चुनाव के दौरान धर्म के नाम पर वोट नहीं मांगा जा सकता। कोर्ट ने हिंदुत्व मामले में कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ ने एक अहम फैसले में आज कहा कि प्रत्याशी या उसके समर्थकों के धर्म, जाति, समुदाय, भाषा के नाम पर वोट मांगना गैरकानूनी है। चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष पद्धति है। इस आधार पर वोट मांगना संविधान की भावना के खिलाफ है। आने वाले पांच राज्यों में इसका असर होने की संभावना है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट करते हुए कहा कि प्रत्याशी और उसके विरोधी व एजेंट की धर्म, जाति और भाषा का इस्तेमाल वोट मांगने के लिए नहीं किया जा सकता है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में एक याचिका दाखिल की गई थी, इसके तहत सवाल उठाया गया था कि धर्म और जाति के नाम पर वोट मांगना जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत करप्ट प्रैक्टिस है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया की अगर कोई उम्मीदवार ऐसा करता है तो ये जनप्रतिनिधित्व कानून (RP Act) के तहत भ्रष्ट आचरण माना जाएगा। ये जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123(3) की जद में होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न केवल प्रत्याशी बल्कि उसके विरोधी उम्मीदवार के धर्म, भाषा, समुदाय और जाति का इस्तेमाल भी चुनाव में वोट मांगने के लिए नहीं किया जा सकता है। चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया है और चुने गए उम्मीदवार का कार्यकलाप भी धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए।
भगवान और मनुष्य के बीच का रिश्ता व्यक्तिगत
सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी खरते हुए कहा की भगवान और मनुष्य के बीच का रिश्ता व्यक्तिगत मामला है। कोई भी सरकार किसी एक धर्म के साथ विशेष व्यवहार नहीं कर सकती। एक धर्म विशेष के साथ खुद को नहीं जोड़ सकती। इससे पहले पिछले 6 दिनों में लगातार मामले की सुनवाई हुई और इस मामले में सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान, अरविंद दत्तार, कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद और इंदिरा जय सिंह आदि ने तमाम दलीलें पेश की। राजनीतिक पार्टी अकाली दल का गठन मॉइनॉरिटी (सिख) के लिए काम करने के लिए बना है।
1995 के फैसले को नहीं बदलेगा- SC
सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच ने एक बार फिर साफ किया कि वह हिंदुत्व के मामले में दिए गए 1995 के फैसले को दोबारा एग्जामिन नहीं करने जा रहे। 1995 के दिसंबर में जस्टिस जेएस वर्मा की बेंच ने फैसला दिया था कि हिंदुत्व शब्द भारतीय लोगों की जीवन शैली की ओर इंगित करता है हिंदुत्व शब्द को सिर्फ धर्म तक सीमित नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो 1995 में फैसला दिया था वह उस पर पुनर्विचार नहीं करेगा और न ही उसे दोबारा एग्जामिन करेगा। गौरतलब है कि हाल ही में सोशल एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड, रिटायर प्रोफेसर शम्सुल इस्लाम और दिलीप मंडल ने अर्जी दाखिल कर धर्म और राजनीति को अलग करने की गुहार लगाई हुई है।
3 राज्यों ने पेश की थी दलील
राजस्थान, मध्यप्रदेश व गुजरात की ओर से पेश एडीशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि धर्म को चुनावी प्रक्रिया से अलग नहीं किया जा सकता हालांकि कैंडिडेट धर्म के नाम पर वोट मांगता है तो ये करप्ट प्रैक्टिस माना जाए। इस पर चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की कि राज्य इस तरह का रिप्रेजेंटेशन क्यों दे रही है। क्यों धर्म के नाम पर इजाजत दी जाए। संसद का मकसद साफ है कि किसी भी इस तरह के वाकये को स्वीकार न किया जाए।
टीम बेबाक
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