New Delhi: अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला वट सावित्री (Vat Savitri) का यह कल यानी 22 मई को मनाया जाएगा। इस व्रत (Vat Savitri) को हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या को रखा जाता है। धार्मिक मान्यता अनुसार, इस व्रत को सुहागिन स्त्रियां अपनी पति की लंबी आयु के लिए रखती है। जो स्त्री इस व्रत को सच्ची निष्ठा से रखती है उसे न सिर्फ पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि उसके पति पर आई सभी परेशानियां भी दूर हो जाती हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता सावित्री अपने पति के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर ले आई थीं। अत: इस व्रत (Vat Savitri) का महिलाओं के बीच विशेष महत्व बताया जाता है। इस दिन वट (बड़, बरगद) का पूजन होता है। इस व्रत (Vat Savitri) को महिलाएं अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं। कई जगह इस व्रत को ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन रखा जाता है। इस दिन सुहागन महिलाएं पूरा श्रृंगार कर बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं।
वट वृक्ष (Vat Savitri) की जड़ में भगवान ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु व डालियों, पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। महिलाएं इस दिन यम देवता की पूजा करती हैं। इस व्रत के कुछ नियम हैं जिनका पालन करना काफी अहम माना गया है। तो आइए जानते हैं वट सावित्री व्रत की पूजन सामग्री, विधि, नियम, कथा और सभी संबंधित जानकारी
इस दिन सुबह घर की सफाई कर स्नान करें। इसके बाद पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें। बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें। ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें। इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें। इसके बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें। अब सावित्री और सत्यवान की पूजा करते हुए बड़ की जड़ में पानी दें।
पूजन सामग्री
पूजन के लिए माता सावित्री की मूर्ति, बांस का पंखा, बरगद पेड़, लाल धागा, कलश, मिट्टी का दीपक, मौसमी फल, पूजा के लिए लाल कपड़े, सिंदूर-कुमकुम और रोली, चढ़ावे के लिए पकवान, अक्षत, हल्दी, सोलह श्रृंगार व पीतल का पात्र जल अभिषेक के लिए।
व्रत मुहूर्त
अमावस्या तिथि 21 मई रात 9 बजकर 35 मिनट से शुरू हो जायेगी और इसकी समाप्ति 22 मई को रात 11 बजकर 8 मिनट पर हो जायेगी। व्रत 22 तारीख को रखा जायेगा। अत: पूरे दिन किसी भी समय वट देव सहित माता सावित्री की पूजा की जा सकती है।
पूजा विधि
इस व्रत (Vat Savitri) में बरगद के पेड़ की पूजा के साथ-साथ सत्यवान और यमराज की पूजा भी की जाती है। वट सावित्री व्रत के दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान कर व्रत करने का संकल्प लें। फिर सोलह श्रृंगार करें और सूर्य देव को जल का अर्घ्य दें। फिर बांस की एक टोकरी में पूजा की सभी सामग्रियां रख वट वृक्ष के पास जाकर पूजा प्रारंभ करें। सबसे पहले पेड़ की जड़ को जल का अर्घ्य दें। फिर सोलह श्रृंगार अर्पित करें। इसके बाद वट देव की पूजा करें।
वट-वृक्ष (Vat Savitri) की पूजा हेतु जल, फूल, रोली-मौली, कच्चा सूत, भीगा चना, गुड़ इत्यादि चढ़ाएं और जलाभिषेक करें। पेड़ के चारों ओर कच्चा धागा लपेट कर तीन बार परिक्रमा करें। इसके बाद बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री व्रत की कथा सुनें। कथा सुनने के बाद भीगे हुए चने का बायना निकाले और उसपर कुछ रूपए रखकर अपनी सास को दें। जो स्त्रियां अपनी सांस से दूर रहती हैं, वे बायना उन्हें भेज दें और उनका आशीर्वाद लें। पूजा की समाप्ति के पश्चात ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि दान करें।
टीम बेबाक