New Delhi: बेड़ी हनुमान मंदिर, जंजीर से बंधा एक हनुमान मंदिर है। यह समुद्र तट के निकट स्थित एक छोटा सा मंदिर है, जो पुरी के चक्र नारायण मंदिर की पश्चिम दिशा की ओर बना है। इसे दरिया महावीर मंदिर भी कहा जाता है। दरिया का अर्थ है समुद्र और महावीर भगवान हनुमान का दूसरा नाम है।
क्या है इसके पीछे की पौराणिक मान्यता
मंदिर की बाकी दिशाओं में भी हनुमान जी जगन्नाथ के रक्षक के रूप में विराजमान हैं, जिनसे जुड़ी अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं। मंदिर के द्वार के सामने भी जो समुद्र है, वहां पर भी बेड़ी हनुमान जी का मंदिर है। ये मंदिर पुरी के चक्र नारायण मंदिर की पश्चिम दिशा की ओर बना है। इस मंदिर में हनुमान जी बेड़ियों यानी जंजीरों से बंधे हुए नजर आते हैं, इसलिए यहां हनुमान जी को बेड़ी हनुमान कहा जाता है। पुरी के लोग इसे दरिया महावीर मंदिर भी कहते हैं।
माना जाता है कि समुद्र की लहरों से जगन्नाथ मंदिर को 3 बार काफी नुकसान पहुंचा था। समुद्र से मंदिर की रक्षा के लिए ही भगवान ने वीर हनुमान जी को नियुक्त किया था और हनुमान जी से समुद्र की लहरों को रोककर रखने के लिए कहा था। लेकिन जब-जब हनुमान जी भी भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए नगर में प्रवेश कर जाते थे, तब समुद्र भी उनके पीछे-पीछे नगर में प्रवेश कर जाता था। इससे परेशान होकर भगवान जगन्नाथ ने हनुमान जी को यहां सोने के जंजीरों से बांध दिया, ताकि हनुमान जी यहां से कहीं न जा पाएं और सुमद्र से मंदिर की रक्षा होती रहे। तभी से यहां समुद्र के तट पर बेड़ी हनुमान का प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है। यहां आने वाले भक्त बेड़ी हनुमान जी के जरूर दर्शन करते हैं।
मंदिर की बाहरी दीवारों पर विभिन्न देवी-देवताओं के चित्र हैं। जैसे कि पश्चिमी दिशा की दीवार पर अंजना अपने गोद में बैठे बच्चे से लाड़ कर रही हैं। उत्तरी दिशा की दीवार पर आभूषित खम्बे की चौकी को पकड़े खड़ी एक दैवत्व महिला और दक्षिणी ओर की दीवार पर भगवान गणेश के चित्र पुरी के सांस्कृतिक गौरव को बढ़ाते हैं।
हनुमान जी चारों द्वारों पर रहकर मंदिर की रक्षा करते हैं…
-पूर्वी द्वार पर बैठे हनुमान जी को ‘फट हनुमान’ के रूप में पूजा जता है।
-पश्चिमी द्वार पर हनुमानजी की लगभग चार फीट ऊंची मूर्ति है और यहां उन्हें ‘कानपाटा हनुमान‘ के नाम से जाना जाता है।
-मंदिर के उत्तरी द्वार पर हनुमान जी के चार हाथ हैं और चारों हाथों में वे चक्र पकड़े हुए हैं और यहां उन्हें ‘अष्टभुज हनुमान’ के रूप में पूजा जाता है।
-वहीं, दक्षिणी द्वार पर हनुमान जी की प्रतिमा 7 फीट ऊंची है और यहां उन्हें ‘बारा बाई हनुमान’ के रूप में जाता जाता है।
दक्षिणी द्वार पर विराजमान हनुमान की महिमा
जगन्नाथ मंदिर के दक्षिणी द्वार के पास जो हनुमान मंदिर है, उसके लिए कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण जगदगुरु आदिशंकराचार्य ने करवाया था। कहते हैं कि समुद्र की लहरें कभी भी मंदिर के आंगन में आ जाती थीं, जिससे वहां पर आए भक्तों को बहुत परेशानी होती थी, इसे रोकने के लिए आदिशंकराचार्य ने मंदिर के दक्षिणी द्वार पर हनुमान जी की मूर्ति स्थापित कर उनका आह्वान किया और उनसे समुद्र को रोक कर रखने की प्रार्थना की।
कहा जाता है कि उसके बाद से हनुमान जी की कृपा से समुद्र के द्वारा पुरी में कभी भी कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आई है। यहां तक कि लोगों का ये भी कहना है कि जब साल 2019 में ओडिशा में आए भयंकर चक्रवाती तूफान फनी ने तबाही मचाई थी, तब भी समुद्र की लहरें ज्यादा अंदर तक नहीं घुस पाई थीं और जगन्नाथ मंदिर के मुख्य ढाचे को भी कोई नुकसान नहीं पहुंच पाया था।
कई रूपों में हनुमान जी भगवान जगन्नाथ की कर रहे हैं सेवा
ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ समुद्र की लहरों की तेज आवाज की वजह से ठीक से सो नहीं पाते थे। जब उनकी ये परेशानी हनुमान जी को पता चली तो उन्होंने अपनी शक्ति से खुद को दो भागों में बांट लिया और फिर वे हवा की भी तेज रफ्तार से मंदिर के आसपास चक्कर लगाने लगे। इससे हवा का ऐला चक्र बना कि समुद्र की आवाज मंदिर के अंदर ना जाकर मंदिर के आसापस ही घूमती रहती है और मंदिर में भगवान जगन्नाथ आराम से सोते हैं। इस तरह हनुमान जी यहां कई रूपों में रहकर भगवान की सेवा में लगे हैं और यही कारण है कि इस मंदिर में कुछ रहस्य आज तक आधुनिक विज्ञान की भी समझ से परे है।