नई दिल्ली: विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने मंगलवार को अपनी सालाना रिपोर्ट जारी की। इसमें कहा गया है कि साल 2010-19 का दशक इतिहास में सबसे गर्म रहा। 40 साल में इस दशक ने गर्मी के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए।
इस साल वैश्विक तापमान औद्योगीकरण से पहले के दौर की तुलना में 1.1° सेल्सियस बढ़ा है। बढ़ते कार्बन उत्सर्जन को इसका मुख्य कारण मानते हुए चेतावनी दी गई है कि इससे तापमान में और इजाफा होगा और यह स्थिति पृथ्वी के लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकती है। समुद्रों का तापमान और उसका जलस्तर भी रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ा है।
दुनिया के समुद्र 150 साल पहले की तुलना में 26% अम्लीय हो गए हैं, जिसके कारण लोगों के भोजन और नौकरियों पर असर पड़ सकता है। डब्ल्यूएमओ के महासचिव पेटरी तलास ने कहा- ‘एक और साल, एक और रिकॉर्ड। साल 2015 में जो हमने सबसे ऊंचा तापमान दर्ज किया था, वह 2020 में टूटने वाला है।
लू, बाढ़, सूखा और चक्रवात की घटनाएं पहले सदियों तक नहीं होती थीं, लेकिन बढ़ते कार्बन उत्सर्जन और ग्रीन हाउस गैसों के कारण तापमान बढ़ने से आए दिन इसके दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं। यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और जापान में लू, दक्षिण अफ्रीका में महातूफान, ऑस्ट्रेलिया, कैलिफोर्निया के जंगलों में आग की घटना इसका ताजा उदाहरण है।
विस्थापित होने वालों की संख्या 2.2 करोड़ पहुंच सकती है
पिछले 40 साल में हर साल पिछले से अधिक गर्म रहा है। रिपोर्ट में कहा गया कि इस साल के अंत तक मौसम में बदलाव के चलते विस्थापित होने वालों की संख्या 2.2 करोड़ पहुंच सकती है। इधर, संयुक्त राष्ट्र ने पिछले हफ्ते जारी बयान में कहा कि दुनिया को कार्बन उत्सर्जन में हर साल 7.6% की कटौती की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो 2030 तक तापमान 1.5 डिग्री बढ़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो यह सबसे भयावह स्थिति होगी।
क्यों बड़ा तापमान और क्या होगा नुकसान
जीवाश्म ईंधन जलाने, नए भवन निर्माण, फसलें और परिवहनों से कार्बन उत्सर्जन बढ़ रहा। जलवायु परिवर्तन, सूखा, लू, बाढ़, चक्रवाती तूफान, जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ेंगी। बेमौसमी बीमारियों से मौतें, खाद्यान्न संकट, लोगों का विस्थापन और रोजगार घटेगा।
टीम बेबाक