New Delhi: हमारे शरीर में कुल 114 चक्र है, जिसमें से 2 चक्र शरीर के बाहर होते हैं और इनमें से भी 9 चक्र प्रमुख हैं और यहां भी 9 में से 2 चक्र शरीर के बाहर हैं तो इस तरह से मुख्य रूप से जो प्रमुख चक्र हैं वो 7 है। और हमें इन्हीं 7 चक्रों को जाग्रत करने के लिए हमेशा कोशिश करते रहना चाहिए। क्योंकि यही मनुष्य की उन्नति में सहायक है और सृष्टि की समस्त शक्तियों का केंद्र भी यही 7 चक्र है। तो आज हम आपको इन्हीं 7 चक्रों के बारे में थोड़ी बहुत जानकरी दे रहे हैं। आइए जानते हैं इन चक्रों के बारे में।
मूलाधार चक्र
सप्त चक्रों के क्रम में मूलाधार पहला चक्र है।
इसकी आकृति 4 पंखुड़ियों वाले कमल के समान होती है और ये चार पंखुड़ियां काम, वासना, लालसा और सनक की प्रवृत्ति को दर्शाती है।
मूलाधार चक्र जागृत होने पर कामवासना, मानसिक स्थिरता, भावनात्मक रूप से इंद्रियों को नियंत्रित करने लगती है।
यह चक्र ज्ञानेन्द्रियों और गुदा के मध्य स्थित होता है।
इस चक्र को कुलकुण्डलिनी का मुख्य स्थान कहा जाता है। इसका एक और नाम भौम मंडल भी है।
यह चक्र चौकोर तथा उगते हुये सूर्य के समान स्वर्ण वर्ण का है।
भौतिक रूप से सुगंध और आरोग्य इसी चक्र से नियंत्रित होते हैं।
आध्यात्मिक रूप से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का नियंत्रण करता है।
इसका बीजाक्षर है – “लं”
व्यक्ति के अन्दर अत्यधिक भोग की इच्छा और आध्यात्मिक इच्छा इसी चक्र से आती है।
स्वाधिष्ठान चक्र
स्वाधिष्ठान चक्र नाभि से थोड़ा नीचे होता है। यह आपके प्रजनन अंगों और आपकी कल्पना को नियंत्रित करता है।
इस चक्र का स्वरुप अर्ध-चन्द्राकार है, यह जल तत्त्व का चक्र है इसका रंग नारंगी है।
इस चक्र से निम्न भावनाएं नियंत्रित होती हैं – अवहेलना,सामान्य बुद्धि का अभाव, आग्रह, अविश्वास, सर्वनाश और क्रूरता
यह चक्र छह पंखुड़ियों का है क्रमश: क्रोध, घृणा, वैमनस्य, क्रूरता, अभिलाषा और गर्व का प्रतीक है।
इसी चक्र से व्यक्ति के अन्दर काम भाव और उन्नत भाव जाग्रत होता है।
इस चक्र का बीज मंत्र है – “वं”
इस चक्र को तामसिक चक्र माना जाता है।
मणिपुर चक्र
यह चक्र नाभि के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी पर स्थित होता है।
इस चक्र की आकृति त्रिकोण है, और रंग पीला है।
यह चक्र ऊर्जा का सबसे बड़ा केंद्र है। यहीं से सारे शरीर में ऊर्जा का संचरण होता है।
यह अग्नि तत्त्व को नियंत्रित करता है और राजसिक गुण से संपन्न है।
यह चक्र 10 पंखुड़ियों का है।
इस चक्र से निम्न वृत्तियाँ नियंत्रित होती हैं- लज्जा, दुष्ट भाव, ईर्ष्या, सुषुप्ति, विषाद, कषाय, तृष्णा, मोह, घृणा, भय।
मन या शरीर पर पड़ने वाला प्रभाव सीधा मणिपुर चक्र पर पड़ता है।
इस चक्र का बीज मंत्र है- “रं”
अनाहत चक्र
अनाहत चक्र हृदय के निकट सीने के बीच में स्थित है।
आध्यात्मिक दृष्टि से यहीं से साधक के सतोगुण की शुरुआत होती है।
इसी चक्र से व्यक्ति की भावनाएँ और अनुभूतियों की शुरुआत होती है।
इस चक्र को सौर मंडल भी कहा जाता है।
इसका आकार षठकोण का है।
इस चक्र में 12 पंखुड़ियां हैं यह हृदय के दैवीय गुणों जैसे परमानंद, शांति, सुव्यवस्था, प्रेम, संज्ञान, स्पष्टता, शुद्धता, एकता, अनुकंपा, दयालुता, क्षमाभाव और सुनिश्चिय का प्रतीक है।
इस चक्र से निम्न प्रकार की वृत्तियाँ नियंत्रित होती हैं – आशा, चिंता, चेष्टा, ममता, दंभ, विवेक, विकलता, अहंकार, लोलता, कपटता, वितर्क, अनुताप.
व्यक्ति की भावनाएं और साधना की आंतरिक अनुभूतियां इस चक्र से सम्बन्ध रखती हैं।
मानसिक अवसाद की दशा में इस चक्र पर गुरु ध्यान और प्राणायाम करना अदभुत परिणाम देता है।
इस चक्र का बीज मंत्र है – “यं” और चक्र का रंग हरा होता है।
विशुद्ध चक्र
कंठ के ठीक पीछे स्थित चक्र है विशुद्ध चक्र।
यह चक्र और भी उच्चतम आध्यात्मिक अनुभूतियाँ देता है, सारी की सारी सिद्धियाँ इसी चक्र में पायी जाती हैं।
यह चक्र आकाश तत्त्व और आठों सिद्धियों से सम्बन्ध रखता है।
इस चक्र की 16 पंखुड़ियां हैं।
कुंडली शक्ति का जागरण होने से जो ध्वनि आती है वह इसी चक्र से आती है।
इसका बीज मंत्र है – “हं” और चक्र का रंग बैंगनी होता है।
इस चक्र से निम्न वृत्तियां नियंत्रित होती हैं- भौतिक ज्ञान, कल्याण, महान कार्य, ईश्वर में समर्पण, विष और अमृत।
इस चक्र के गड़बड़ होने से गले या सांस संबंधित तकलीफ या थाईराइड जैसी समस्याएं और बोलने में दिक्कत पैदा होती है।
संगीत के सातों सुर इसी चक्र का खेल हैं।
आज्ञा चक्र
जहां हम माथे पर टिका लगाते है या महिलाएं बिंदी लगाती है, यह वही स्थित होता है और इसको ही आज्ञा चक्र कहा जाता है।
यह दो पंखुड़ियों वाला है। एक पंखुड़ी काले रंग की और दूसरी पंखुड़ी सफ़ेद रंग की है।
सफ़ेद पंखुड़ी ईश्वर की ओर जाने का प्रतीक है और काली पंखुड़ियों का अर्थ संसारिकता की ओर जाने का है।
इस चक्र के दो अक्षर और दो बीज मंत्र हैं- ह और क्ष
इस चक्र का कोई ध्यान मंत्र नहीं है क्योंकि यह पांच तत्वों और मन से ऊपर होता है।
इस चक्र पर मंत्र का आघात करने से शरीर के सारे चक्र नियंत्रित होते हैं।
इसी चक्र पर इडा, पिंगला और सुषुम्ना आकार खुल जाती हैं और मन मुक्त अवस्था में पहुंच जाता है।
सहस्त्रार चक्र
मष्तिष्क के सबसे उपरी हिस्से जिसको कपाल भी बोलते हैं। ये चक्र वही पर स्थित होता है और इसको ही सहस्त्रार कहा जाता है।
यह सहस्त्र पंखुड़ियों वाला है और बिलकुल सफ़ेद रंग का है।
इस चक्र का न तो कोई धयान मंत्र है और न ही कोई बीज मंत्र, इस चक्र पर केवल गुरु का ध्यान किया जाता है।
कुण्डलिनी जब इस चक्र पर पहुंचती है तब जाकर वह साधना की पूर्णता पाती है और मुक्ति की अवस्था में आ जाती है।
इसी स्थान को तंत्र में काशी कहा जाता है।
इस स्थान पर सदगुरु का ध्यान या कीर्तन करने से व्यक्ति के मुक्ति मोक्ष का मार्ग सहज हो जाता है।
हर एक चक्र हमारे सूक्ष्म शरीर में प्राण ऊर्जा का एक बिंदु है और जब ये चक्र अवरुद्ध या रुक जाते हैं तो व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक तकलीफ़ों और बीमारियों से ग्रस्त होना पड़ सकता है।
योग एक ऐसा माध्यम है, जो इन चक्रों को सुचारू रूप से संचालित कर क्रियाशील बनाता है। जिसमें आसन, प्राणायाम और ध्यान के नियमित अभ्यास करें (ज़्यादा जानकारी के लिए यूट्यूब पर योग गुरु पंकज शर्मा या चैनल sharnam देखें)। क्योंकि दिन-प्रतिदिन बढ़ती व्यस्तता और व्यग्रता व तनाव के कारण हम अक्सर किसी ना किसी रोग से घिरे रहते हैं। योग हमें सभी परेशानियों से मुक्ति दिलाता है। जो लोग योगा करते हैं, उनके जीवन की गुणवत्ता, उन लोगों की तुलना में बेहतर होती है, जो लोग योग नहीं करते हैं।
योग गुरु पंकज शर्मा