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जानिए किसे कहते हैं प्राणायाम और क्या है इसे करने की सही विधि

preety shukla by preety shukla
November 15, 2020
in सेहत
1 min read
0
प्राणायाम

New Delhi: प्राणायाम एक संस्कृत भाषा का शब्द है, जो दो शब्दों से मिलके बना है इसमें पहला शब्द “प्राण” जिसका अर्थ “साँस” (जीवन शक्ति) है और दूसरा शब्द “आयाम” जिसका अर्थ “नियंत्रण” (विस्तार) है।

नित्य रूप से प्राणायाम का अभ्यास करने से प्राणशक्ति में अत्यधिक वर्द्धि होती है। इसका अभ्यास करने से व्यक्ति को पूर्ण स्वास्थ्य मिलता है और उम्र बढ़ती है। प्राणायाम के महत्व को आप एक छोटे से उदाहरण से भी समझ सकते हैं, जैसे- कछुआ 1 मिनट में 4 से 5 श्वास लेता है और उसकी उम्र होती है लगभग 200 से 400 वर्ष। वहीं मनुष्य 1 मिनट में 15 से 16 श्वास लेता है एवं लगभग 100 साल जीता है।

हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है-

चले वाते चलं चित्तं निश्चले निश्चलं भवेत्
योगी स्थाणुत्वमाप्नोति ततो वायुं निरोधयेत्॥२॥

(अर्थात प्राणों के चलायमान होने पर चित्त भी चलायमान हो जाता है और प्राणों के निश्चल होने पर मन भी स्वत: निश्चल हो जाता है और योगी स्थाणु हो जाता है। अतः योगी को श्वांसों का नियंत्रण करना चाहिये।

योग के आठ अंगों में से चौथा अंग है प्राणायाम। प्राणायाम करते या श्वास लेते समय हम तीन क्रियाएँ करते हैं-

1.पूरक
2.कुम्भक
3.रेचक

इसे ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं। अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंदर रोकने को आंतरिक कुम्भक और बाहर रोकने को बाह्म कुम्भक कहते हैं।

(1) पूरक:- अर्थात नियंत्रित गति से श्वास अंदर लेने की क्रिया को पूरक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब भीतर खिंचते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।

(2) कुम्भक:- अंदर की हुई श्वास को क्षमतानुसार रोककर रखने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं। श्वास को अंदर रोकने की क्रिया को आंतरिक कुंभक और श्वास को बाहर छोड़कर पुन: नहीं लेकर कुछ देर रुकने की क्रिया को बाहरी कुंभक कहते हैं। इसमें भी लय और अनुपात का होना आवश्यक है।

(3) रेचक:- अंदर ली हुई श्वास को नियंत्रित गति से छोड़ने की क्रिया को रेचक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब छोड़ते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।

योगियों ने श्वास पर गहन गंभीर प्रयोग किए और यह निष्कर्ष निकाला कि प्राण को साध लेने पर सब कुछ साधा जा सकता है।श्वांसों का संतुलित होना मनुष्य के प्राणों के संतुलन पर निर्भर करता है। प्राणों के सम्यक् व संतुलित प्रवाह को ही प्राणायाम कहते हैं ।प्राणायाम योग के आठ अंगों में से एक है। अष्टांग योग में आठ प्रक्रियाएँ होती हैं।

1.यम
2.नियम
3.आसन
4.प्राणायाम
5.प्रत्याहार
6.धारणा
7.ध्यान

8.समाधि

तस्मिन्सति श्वास प्रश्वास योगर्ती विच्छेद: प्राणायाम: ||
अर्थात आसन की सिद्धि होने के बाद श्वास-प्रश्वास की जो गति है उसे विच्छेद करना। विच्छेद करने का अर्थ है की श्वास की स्वाभाविक गति को रोककर नियमन या सम करना।

प्राणायाम की अवस्थाएं/States or Pranayama

बहुत से आचार्यों ने इसकी चार अवस्थाएँ बताई है, यथा-आरम्भक, घट, परिचय और निष्पति। यहां प्राणायाम की आरंभक अवस्था का अर्थ है साधक की जिज्ञाषा और रूचि प्राणायाम में जागृत होती है। तब वह प्राणायाम में जल्दबाजी करता है। जिससे वह जल्दी थक जाता है और पूरा शरीर पसीने-पसीने हो जाता है। लेकिन जब साधक धैर्य और विश्वास के साथ धीरे-धीरे प्राणायाम करता है एवं उसका शरीर थकान महसूस नहीं करता यह उसकी दूसरी अवस्था यानि की घट अवस्था कहलाती है।

घट अवस्था का अर्थ है की मनुष्य घड़े के सामान होता है- जैसे अगर घड़े को आग में न पकाया जाए तो वह जल्दी नष्ट हो जाता है। उसी प्रकार अगर मनुष्य शरीर को प्राणा-याम की अग्नि में पकाया जाए तो वह जल्दी नष्ट नहीं होता।

तीसरी अवस्था परिचय की है। इसका अर्थ है की साधक का शरीर जब धीरे-धीरे प्राणायाम की आग में तप कर मजबूत एवं स्थिरता धारण कर लेता है तब वह परिचयात्मक अवस्था में होता है।

अन्तिम अवस्था निष्पति की अवस्था है जो साधक की परम गति की अन्तिम अवस्था होती है। इसमें साधक को आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है, जिससे की वह सम्पूर्ण गुणों से युक्त हो जाता है। आसन और प्राणायाम के बारे में अधिक जानकारी के लिए देखें यूट्यूब पर देखें योग गुरु पंकज शर्मा या शरणम (sharnam) चैनल।

योग गुरु पंकज शर्मा

preety shukla

preety shukla

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